Kavita Jha

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पंचामृत सी पंचकन्या #लेखनी नॉन स्टॉप कहानी प्रतियोगिता-09-May-2022

                   अध्याय -8
              आज की अहिल्या
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गौतम ऋषि के श्राप का असर तुरंत इन्द्र पर पड़ा, अंडकोष  इन्द्र के शरीर से नीचे गिर पड़ा और  हजारों योनियां इन्द्र के पूरे शरीर पर उग गई। गौतम ऋषि बोले, "इन्द्र अब तुम्हें किसी स्त्री योनि की आवश्यकता नहीं है, तुम स्वयं हजार योनि के मालिक हो गए। "

इन्द्र शर्म और  ग्लानि से अपने दोनों हाथ ऋषि के समक्ष फैला अपने घुटनों पर बैठ क्षमा याचना करने लगे। इन्द्र की क्षमायाचना से गौतम का दिल पिघल गया और
ऋषि गौतम ने योनि को आँख में बदल दिया, अब ये हजार आँखे तुम्हारे साथ रहेंगी। तुम्हारे अंडकोष की जगह अब तुम्हारे अंग पर बकरे का अंडकोष सिलवा देता हूँ। ऐसा कहते ही उन्होंने अपने एक शिष्य को आदेश दिया, बलि के लिए बकरा लाने का और एक मोची भी ले आना।

थोड़ी ही देर में अंग प्रत्यारोपण का कार्य किया जा रहा था,  एक लंबी सी सूई से एक मोची जो चमड़े के जूते सिलता, इन्द्र के शरीर पर बकरे का अंग सिल रहा था और  इन्द्र दर्द से कराह रहा था।
पंचम ये वाक्य पढ़ते ही सिहर उठी..
sew the balls of a Billy goat on Indra..

Oh! My God!
कितनी बड़ी सजा मिली बलात्कारी इन्द्र को। काश आज के समय भी ऐसा होता। ना कोर्ट ना कचहरी के चक्कर, बलात्कारी को तुरंत सजा मिलती। पर यहाँ भी तो एक पुरुष ने सजा देकर उस पर दया दिखा ही दी।

पंचम किताब को टेबल पर रख अपनी मम्मी जो सुबह की पूजा कर तुलसी में जल डाल रही थी, उसके पास जाकर खड़ी हो गई और नीलिमा के पूजा करते ही उसके गले लग गई.. गुडमार्निंग मम्मा..
आज जल्दी उठ गई बुचिया, मेरे जगाने से पहले ही। आज सूरज पश्चिम से तो नही निकला कह नीलिमा हँसने लगी। फिर जब पंचम की आँखें लाल देखी तो घबरा गई। क्या हुआ बुचिया, नींद ठीक से नहीं आई क्या रात को।

"नहीं माँ कुछ नहीं बस कुछ पढ़ रही थी तो समय का पता ही नहीं चला। चलो ना मम्मा अपने कमरे में, आपसे कुछ पूछना है।"

"अच्छा चल मैं चाय लेकर आती हूँ.."
कहकर नीलिमा किचन में चली गई और पंचम अपनी माँ के कमरे की एक दीवार पर लगी मिथिला पेंटिंग को ध्यान से देखने लगी, जिसमें दोनों तरफ बड़े वृक्ष और एक तरफ पत्थरों के बीच एक सुंदर स्त्री एक पुरुष जिसके काँधे धनुष बाण है को प्रणाम करती और  साथ ही एक अन्य पुरुष और ऋषि जैसा एक व्यक्ति का चित्र। पंचम एक टक उस पेंटिंग को निहार रही थी, कुछ दिन पहले ही उसकी बड़ी बहन निशा ने ये पेंटिंग बनाकर नीलिमा को जन्मदिन पर दी थी।

नीलिमा दो कप चाय लिऐ कमरे में  प्रवेश करती है।
अरे! बुचिया खड़ी क्यों है, चल आ मेरे पास बैठ और  चाय पी, आज काॅलेज नहीं जाना है क्या??
नहीं मम्मा..
आज का पूरा दिन आपके साथ बिताऊंगी, वैसे भी अभी काॅलेज में यूथ फैस्टिवल की तैयारी हो रही है तो पढ़ाई नहीं  हो पा रही।
अच्छा  बताओ ना मम्मा.. इस तस्वीर में ये औरत और  आदमी सब कौन है।
बुचिया ये निशा ने अहिल्या उद्धार की तस्वीर बनाई है। ये जो औरत है ना वो अहिल्या है जो गौतम ऋषि की पत्नी है ,और राम लक्ष्मण संग उनके गुरु हैं।
अच्छा माँ..
रात को मैं अहिल्या की ही कहानी पढ़ रही थी। वो गौतम  ऋषि के श्राप से पत्थर नहीं बनी, और उनके बलात्कारी इन्द्र को श्राप मिला। मम्मा क्या सच में ही ऐसा हुआ था।
अहिल्या क्यों पत्थर बन गई, जबकि ऋषि के श्राप का कोई असर नहीं हुआ था।
टीवी पर रामायण में तो यही दिखाते थे कि ऋषि गौतम के श्राप से ही अहिल्या पत्थर बनी थी। क्या वो सच नहीं था??
हाँ मुझे भी यही लगता है .. जो तूँ बता रही  है ना अहिल्या पर ऋषि गौतम के श्राप का कोई असर नहीं पड़ा वही सच होगा।
बुचिया ऐसी ही तो होती थी मिथिला की स्त्रियाँ। जब सब तरफ अपमान और घृणा ही घृणा दिखी, अहिल्या की गलती ना होने पर जब गौतम ऋषि को एहसास हुआ तो उन्होंने अहिल्या के प्रति किऐ अपने व्यवहार के लिए माफी भी माँगी। लेकिन अहिल्या एक पतिव्रता स्त्री थी परन्तु अपना स्वाभिमान बचाऐ रखने के लिये तपस्या में लीन हो गई और एक पत्थर में परिवर्तित हो गई । मर्यादा पुरुषोत्तम राम भगवान के चरण धूलि और आशीर्वाद से उन्हें पुनः जीवन प्राप्त हुआ और  उनका उद्धार हुआ।

"मम्मा आपका निशा दीदी का जीवन भी तो अहिल्या जैसा ही है ना।
निशा दीदी ने डाइवोर्स लेकर अच्छा किया, जीजाजी बेवजह उस पर हमेशा शक करते, जीना मुश्किल कर दिया था दीदी का। अब उस रिस्ते से आजाद हो दीदी अपना जीवन जी पाऐगी। हमारे काॅलेज में अभी लेक्चरर की पोस्ट खाली है, मैं आज ही दीदी से बात करती हूँ।"

पंचम चाय का कप रखते हुए जैसे ही माँ के पास से उठी।
नीलिमा ने उसका हाथ पकड़ उसे अपने पास बिठा लिया।
"बुचिया अभी उसे अपनी उन कड़वी यादों से निकलने में थोड़ा समय लगेगा। मुझे भी यही लगता है उसने जो किया ठीक किया, ऐसे आदमी के साथ रहने से जो हमेशा शक करे गलत भावनाऐं रखे उससे अच्छा तो जीवन में अकेला रहना ज्यादा अच्छा है। फिर अभी उसकी माँ जिन्दा है और तुम चारों बहने हो ना उसके साथ। उसे और  तुम सबको इतना पढ़ाया लिखाया इसीलिए ना कि अपने खुद का सही गलत सोच सको। जब अपनी गलती ना हो तो क्यों सजा झेलें। मैंने भी बिना अपनी किसी गलती के ..."
नीलिमा की आँखों से आँसू लुढ़क रहे थे अपने अतीत को याद कर।
पर मैं अपनी बेटियों को अपनी तरह कमजोर ना बनने दूंगी, कहते हुए अपने आँचल से अपने आँसूओं से भीगे चेहरे को पोछती है।

***

कविता झा'काव्या कवि'

#लेखनी

##लेखनी नॉन स्टॉप 2022 प्रतियोगिता

03.05.2022

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2 Comments

Saba Rahman

04-Jun-2022 11:24 PM

Nyc

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Gunjan Kamal

03-Jun-2022 11:58 PM

बेहतरीन भाग 👏👌👌

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